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भारत और तालिबान के बीच संबंध: एक रणनीतिक दृष्टिकोण

भारत और तालिबान के बीच संबंध चर्चा में क्यों?

भारत के विदेश सचिव ने दुबई में अफगानिस्तान के विदेश मंत्री के साथ वार्ता की, जिसमें मानवीय सहायता, व्यापार और सुरक्षा सहित प्रमुख मुद्दों पर चर्चा की गई।
यह भारत की “नेबरहुड फर्स्ट” नीति और अफगानिस्तान में उसके राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिये तालिबान शासकों के साथ अब तक की सर्वोच्च वैचारिक वार्ता थी।


वार्ता के मुख्य परिणाम

  1. मानवीय सहायता का विस्तार:
    • भारत ने अफगानिस्तान को 50,000 मीट्रिक टन गेहूँ, 300 टन दवाइयाँ, भूकंप सहायता, पोलियो और कोविड-19 वैक्सीन, स्वच्छता किट और सर्दियों के कपड़े प्रदान किये हैं।
    • विकास परामर्श और सहायता को और बढ़ाने पर सहमति व्यक्त की गई।
  2. खेल सहयोग:
    • क्रिकेट के माध्यम से युवाओं को सशक्त बनाने के लिये खेल सहयोग पर चर्चा की गई।
  3. चाबहार बंदरगाह का उपयोग:
    • व्यापार और मानवीय सहायता पहुँचाने के लिये चाबहार बंदरगाह को प्रमुख प्रवेशद्वार के रूप में विकसित करने पर सहमति।
  4. सुरक्षा संबंधी चिंताएँ:
    • भारत ने अफगानिस्तान में सक्रिय लश्कर-ए-तैयबा (LeT), जैश-ए-मोहम्मद (JeM) और ISKP जैसे भारत विरोधी तत्त्वों पर अंकुश लगाने की आवश्यकता पर बल दिया।

भारत-अफगानिस्तान वार्ता के प्रमुख कारक

  1. परिवर्तित वैश्विक गतिशीलता:
    • पाकिस्तान और तालिबान: पाकिस्तान और तालिबान के बीच बढ़ते तनाव ने भारत को तालिबान के साथ जुड़ने का अवसर दिया।
    • चीन का प्रभाव: चीन की अफगानिस्तान में आर्थिक और बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में रुचि भारत के लिये चिंता का विषय है।
    • रूस और अमेरिका का दृष्टिकोण: रूस तालिबान के साथ अपने संबंध सुधार रहा है, और अमेरिका की संभावित वापसी से भारत अपने हित सुरक्षित करने की कोशिश कर रहा है।
  2. सुरक्षा चिंताएँ:
    • भारत ने तालिबान से आतंकवादी नेटवर्क जैसे हक्कानी, LeT और JeM पर कार्रवाई करने का आग्रह किया।
  3. विकास कार्य:
    • अफगानिस्तान में भारत की परियोजनाओं (जैसे बाँध, सड़कें, स्कूल) की प्रशंसा करते हुए, तालिबान ने भारत से निवेश जारी रखने का अनुरोध किया।

भारत और तालिबान के बीच संबंधों का इतिहास

  1. तालिबान शासन (1996-2001):
    • भारत ने तालिबान शासन को औपचारिक रूप से मान्यता नहीं दी और नॉर्दर्न एलायंस का समर्थन किया।
  2. 2021 के बाद तालिबान अधिग्रहण:
    • भारत ने कतर में तालिबान नेताओं के साथ वार्ता शुरू की।
    • काबुल में तकनीकी मिशन बनाए रखा, जो मानवीय और विकास परियोजनाओं पर केंद्रित है।

भारत के लिये अफगानिस्तान का रणनीतिक महत्त्व

  1. मध्य एशिया तक पहुँच:
    • चाबहार बंदरगाह के माध्यम से भारत को मध्य एशिया के ऊर्जा संसाधनों तक पहुँच मिलती है।
  2. पाकिस्तान के प्रभाव का मुकाबला:
    • अफगानिस्तान में प्रभाव बनाए रखना पाकिस्तान के रणनीतिक प्रभुत्व को संतुलित करता है।
  3. आतंकवाद-विरोध:
    • अफगानिस्तान में भारत की भागीदारी दक्षिण एशिया में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को मज़बूत करती है।
  4. पारस्परिक लाभ:
    • भारत द्वारा निवेशित 3 बिलियन डॉलर की परियोजनाएँ दोनों देशों के लिये लाभदायक हैं।

भारत की तालिबान नीति के समक्ष चुनौतियाँ

  1. आतंकवाद:
    • हक्कानी नेटवर्क, अल-कायदा और LeT जैसे आतंकवादी समूह भारत के लिये प्रत्यक्ष खतरा हैं।
  2. पाकिस्तान की रणनीतिक भूमिका:
    • पाकिस्तान अफगानिस्तान को भारत के खिलाफ बफर ज़ोन के रूप में देखता है।
  3. राजनयिक मान्यता:
    • तालिबान शासन को मान्यता देने में भारत अभी भी सतर्क है।
  4. शरणार्थी संकट:
    • अफगान शरणार्थियों की बढ़ती संख्या भारत के संसाधनों पर दबाव डालती है।

आगे की राह

  1. वित्तीय निवेश:
    • शिक्षा, स्वास्थ्य और मानवीय परियोजनाओं में निवेश जारी रखना।
  2. लोकतांत्रिक नेतृत्व:
    • अफगान नागरिक समाज के साथ जुड़ाव और महिला अधिकारों को बढ़ावा देना।
  3. सुरक्षा सहयोग:
    • तालिबान से आतंकवाद के खिलाफ ठोस कदम उठाने की माँग जारी रखना।
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